कालाष्टमी व्रत आज, जानें व्रत की पूजा विधि, मंत्र और व्रत कथा ज्योतिषाचार्य डॉ उमाशंकर मिश्र 9415 087 711 ने बताया कि मान्यता है की इस दिन पूजा करने से घर में फैली हुई सभी तरह की नकारात्मक ऊर्जा दूर हो जाती है। पौराणिक कथाओं अनुसार भगवान शिव ने बुरी शक्तियों का नाश करने के लिए ही रौद्र रुप धारण किया था। कालभैरव इन्हीं का एक स्वरुप हैं।कालाष्टमी व्रत: कालाष्टमी जिसे काला अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। हर महीने कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दौरान इसे मनाया जाता है। यह दिन खासकर कालभैरव के भक्तों के लिए महत्वपूर्ण होता है। कालभैरव के भक्त साल की सभी कालाष्टमी को पूजा-अर्चना और उनके लिए उपवास करते हैं। हर महीने कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को इसे मनाया जाता है। सावन माह में कृष्ण पक्ष की कालाष्टमी 12 जुलाई को यानी की आज है। कृष्णपक्ष की अष्टमी को भैरवाष्टमी भी कहा जाता है। कालअष्टमी के दिन भगवान शिव के रौद्र रूप को पूजा जाता है। मान्यता है कि इस दिन पूजा करने से घर में फैली हुई सभी तरह की नकारात्मक ऊर्जा दूर हो जाती है। पौराणिक कथाओं अनुसार भगवान शिव ने बुरी शक्तियों का नाश करने के लिए ही रौद्र रुप धारण किया था। कालभैरव इन्हीं का एक स्वरुप है। कालाष्टमी व्रत में क्या करें: इसकी पूजा रात के समय की जाती है क्‍योंकि भैरव तांत्रिकों के देवता माने गए हैं। – इस दिन काले कुत्ते को भोजन जरूर कराना चाहिए। – भैरो की पूजा के साथ-साथ माता वैष्णो देवी की भी पूजा करनी चाहिए। – इस दिन मां बंगलामुखी का अनुष्ठान भी किया जाता है। – भगवान शिव की पूजा और काल भैरव की कथा जरूर सुने। – क्षमता अनुसार गरीबों में अन्न और वस्त्र का दान करें। – हो सके तो कालाष्टमी पर किसी मंदिर में जाकर कालभैरव के समक्ष दीपक जलाएं। – माना जाता है जो व्यक्ति कालाष्टमी व्रत रखता है उसके सारे कष्ट मिट जाते हैं। इस व्रत को करने से रोगों से भी मुक्ति मिलती है। कालाष्टमी व्रत कथा (kalashtami vrat katha)- एक समय श्रीहरि विष्णु व ब्रह्मा के मध्य विवाद उत्पन्न हुआ, कि उनमें से श्रेष्ठ कौन है। यह विवाद इस स्तर तक बढ़ गया, कि समाधान हेतु भगवान शिव एक सभा का आयोजन करना पड़ा। इसमें ज्ञानी, ऋषि-मुनि, सिद्ध संत आदि उपस्थित थे। सभा में लिए गए एक निर्णय को भगवान विष्णु तो स्वीकार कर लेते हैं, किंतु ब्रह्मा जी संतुष्ट नहीं होते. वे महादेव का अपमान करने लगते हैं। शांतचित्त शिव यह अपमान सहन न कर सके व ब्रह्मा द्वारा अपमानित किए जाने पर उन्होंने रौद्र रूप धारण कर लिया। भगवान शंकर प्रलय रूपी होने लगे व उनका रौद्र रूप देख कर तीनों लोक भयभीत हो गए। भगवान शिव के इसी रूद्र रूप से भगवान भैरव प्रकट हुए। वह श्वान पर सवार थे, उनके हाथ में दंड था। हाथ में दंड होने के कारण वे “दंडाधिपति” कहे गए। भैरव जी का रूप अत्यंत भयंकर था। उन्होंने ब्रह्म देव के पांचवें सिर को काट दिया, तब ब्रह्म देव को उनके गलती का स्मरण हुआ। तत्पश्चात ब्रह्म देव व विष्णु देव के मध्य विवाद समाप्त हुआ व उन्होंने ज्ञान को अर्जित किया, जिससे उनका अभिमान व अहंकार नष्ट हो गया। काल भैरव मंत्र: ॐ हं षं नं गं कं सं खं महाकाल भैरवाय नम *ज्योतिषाचार्य डॉ उमाशंकर मिश्र 9415087711 Astrovinayakam.com