पत्नी "वामांगी" क्यों कहलाती है ् Jyotishacharya Dr Umashankar mishr-9415087711 शास्त्रों में पत्नी को वामांगी कहा गया है , जिसका अर्थ होता है बायें अंग की अधिकारी ् इसीलिये पुरुष के शरीर का बायां हिस्सा स्त्री का माना जाता है । इसका कारण यह है कि भगवान शिव के बायें अंग से स्त्री की उत्पत्ति हुई है जिसका प्रतीक है उनका "अर्धनारीश्वर रूप" यही कारण है कि हस्तरेखा विज्ञान के अनुसार पुरुष के दायें हाथ से पुरुष की और बायें हाथ से स्त्री की स्थिति देखने की बात कही गयी है ् स्त्री पुरुष की वामांगी होती है , अतः सोते समय और सभा में, सिंदूरदान, आशीर्वाद ग्रहण करते समय और भोजन के समय स्त्री पति के बायीं तरफ रहने से शुभ फल की प्राप्ति होती है । जो कर्म संसारिक होते हैं उसमें पत्नी पति के बायीं ओर बैठती है क्योंकि यह कर्म स्त्री प्रधान कर्म माने जाते हैं ् वामांगी होने पर भी शास्त्रोक्त कथन है कि कुछ कार्यों में स्त्री को दायीं तरफ रहना चाहिये , जैसे कन्यादान, विवाह, यज्ञकर्म, जातकर्म, नामकरण और अन्न प्राशन के समय पत्नी को पति के दायीं तरफ बैठना चाहिये क्योंकि यह सभी कार्य पारलौकिक माने जाते हैं और इन्हें पुरुष प्रधान माना गया है। इसलिए इन कर्मों में पत्नी के दायीं तरफ बैठने के नियम हैं ् वामांगी के अतिरिक्त पत्नी को पति की अर्द्धांगिनी भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है पत्नी, पति के शरीर का आधा अंग होती है । दोनों शब्दों का सार एक ही है जिसके अनुसार पत्नी के बिना पति अधूरा है । पत्नी ही पति के जीवन को पूर्ण करती है, उसे खुशहाली प्रदान करती है, उसके परिवार का ख्याल रखती है, और उसे सभी सुख प्रदान करती है ् "सा भार्या या गृहे दक्षा सा भार्या या प्रियंवदा ,, सा भार्या या पतिप्राणा सा भार्या या पतिव्रता ,, स्वयं कमाओ, स्वयं खाओ यह प्रकृति है । (रजो गुण) दूसरा कमाए, तुम छीन कर खाओ यह विकृती है।(तमो गुण ) स्वयं कमाओ सबको खिलाओ, यह देविक संस्कृति हैं ! (सतो गुण ) देविक प्रवृतियों को धारण करे तभी आप देवलोक पाने के अधिकारी बनेंगे ्