ग्रहों से उत्पन्न होने वाले रोग यदि जन्मकुंडली में यह ग्रह खराब हो तो निम्न रोग उत्पन्न कर सकते है- Jyotishacharya Dr Umashankar mishr-9415087711 सूर्य की बीमारी : * व्यक्ति अपना विवेक खो बैठता है। * दिमाग समेत शरीर का दायां भाग सूर्य से प्रभावित होता है। * सूर्य के अशुभ होने पर शरीर में अकड़न आ जाती है। * मुंह में थूक बना रहता है। * दिल का रोग हो जाता है, जैसे धड़कन का कम-ज्यादा होना। * मुंह और दांतों में तकलीफ हो जाती है। * बेहोशी का रोग हो जाता है। * सिरदर्द बना रहता है। चंद्र ग्रह से होती यह बीमारी: * चन्द्र में मुख्य रूप से दिल, बायां भाग से संबंध रखता है। * मिर्गी का रोग। * पागलपन। * बेहोशी। * फेफड़े संबंधी रोग। * मासिक धर्म गड़बड़ाना। * स्मरण शक्ति कमजोर हो जाती है। * मानसिक तनाव और मन में घबराहट। * तरह-तरह की शंका और अनिश्चित भय। * सर्दी-जुकाम बना रहता है। * व्यक्ति के मन में आत्महत्या करने के विचार बार-बार आते रहते हैं। मंगल देता यह बीमारी: * नेत्र रोग। * उच्च रक्तचाप। * वात रोग। * गठिया रोग। * फोड़े-फुंसी होते हैं। * जख्मी या चोट। * बार-बार बुखार आता रहता है। * शरीर में कंपन होता रहता है। * गुर्दे में पथरी हो जाती है। * आदमी की शारीरिक ताकत कम हो जाती है। * एक आंख से दिखना बंद हो सकता है। * शरीर के जोड़ काम नहीं करते हैं। * मंगल से रक्त संबंधी बीमारी होती है। रक्त की कमी या अशुद्धि हो जाती है। * बच्चे पैदा करने में तकलीफ। हो भी जाते हैं तो बच्चे जन्म होकर मर जाते हैं। बुध ग्रह की बीमारी.: *तुतलाहट। *सूंघने की शक्ति क्षीण हो जाती है। *समय पूर्व ही दांतों का खराब होना। *मित्र से संबंधों का बिगड़ना। *अशुभ हो तो बहन, बुआ और मौसी पर विपत्ति आना। *नौकरी या व्यापार में नुकसान होना। *संभोग की शक्ति क्षीण होना। *व्यर्थ की बदनामी होती है। *हमेशा घूमते रहना, ज्यादातर पहाड़ी इलाकों में। *कोने का अकेला मकान जिसके आसपास किसी का मकान न हो। अगले पन्ने पर, बृहस्पति ग्रह से होती कौन-सी बीमारी, जानि ए गुरु की बीमारी : *गुरु के बुरे प्रभाव से धरती की आबोहवा बदल जाती है। उसी प्रकार व्यक्ति के शरीर की हवा भी बुरा प्रभाव देने लगती है। *इससे श्वास रोग, वायु विकार, फेफड़ों में दर्द आदि होने लगता है। *कुंडली में गुरु-शनि, गुरु-राहु और गुरु-बुध जब मिलते हैं तो अस्थमा, दमा, श्वास आदि के रोग, गर्दन, नाक या सिर में दर्द भी होने लगता है। *इसके अलावा गुरु की राहु, शनि और बुध के साथ युति अनुसार भी बीमारियां होती हैं, जैसे- पेचिश, रीढ़ की हड्डी में दर्द, कब्ज, रक्त विकार, कानदर्द, पेट फूलना, जिगर में खराबी आदि। अगले पन्ने पर, शुक्र ग्रह से होती कौन-सी बीमारी, जानि ए शुक्र की बीमारी : * घर की दक्षिण-पूर्व दिशा को वास्तु अनुसार ठीक करवाएं। * शरीर में गाल, ठुड्डी और नसों से शुक्र का संबंध माना जाता है। * शुक्र के खराब होने से वीर्य की कमी भी हो जाती है। इससे किसी भी प्रकार का यौन रोग हो सकता है या व्यक्ति में कामेच्छा समाप्त हो जाती है। * लगातार अंगूठे में दर्द का रहना या बिना रोग के ही अंगूठे का बेकार हो जाना शुक्र के खराब होने की निशानी है। * शुक्र के खराब होने से शरीर में त्वचा संबंधी रोग उत्पन्न होने लगते हैं। * अंतड़ियों के रोग। * गुर्दे का दर्द * पांव में तकलीफ आदि। अगले पन्ने पर, शनि से होती कौन-सी बीमारी, जानि ए शनि की बीमारी : * शनि का संबंध मुख्‍य रूप से दृष्टि, बाल, भवें और कनपटी से होता है। * समय पूर्व आंखें कमजोर होने लगती हैं और भवों के बाल झड़ जाते हैं। * कनपटी की नसों में दर्द बना रहता है। * समय पूर्व ही सिर के बाल झड़ जाते हैं। * फेफड़े सिकुड़ने लगते हैं और तब सांस लेने में तकलीफ होती है। * हड्डियां कमजोर होने लगती हैं, तब जोड़ों का दर्द भी पैदा हो जाता है। * रक्त की कमी और रक्त में बदबू बढ़ जाती है। * पेट संबंधी रोग या पेट का फूलना। * सिर की नसों में तनाव। * अनावश्यक चिंता और घबराहट बढ़ जाती है। राहु की बीमारी : * गैस प्रॉब्लम। * बाल झड़ना * उदर रोग। * बवासीर। * पागलपन। * राजयक्ष्मा रोग। * निरंतर मानसिक तनाव बना रहेगा। * नाखून अपने आप ही टूटने लगते हैं। * मस्तिष्क में पीड़ा और दर्द बना रहता है। * राहु व्यक्ति को पागलखाने, दवाखाने या जेलखाने भेज सकता है। * राहु अचानक से भी कोई बड़ी बीमारी पैदा कर देता है और व्यक्ति मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। अगले पन्ने पर, केतु ग्रह से होती कौन-सी बीमारी, जानि ए केतु की बीमारी : * पेशाब की बीमारी। * संतान उत्पति में रुकावट। * सिर के बाल झड़ जाते हैं। * शरीर की नसों में कमजोरी आ जाती है। * केतु के अशुभ प्रभाव से चर्म रोग होता है। * कान खराब हो जाता है या सुनने की क्षमता कमजोर पड़ जाती है। * कान, रीढ़, घुटने, लिंग, जोड़ आदि में समस्या उत्पन्न हो जाती है।