पितृ पक्ष २०२३- जानें श्राद्ध की सभी तिथियां ((Jyotishacharya Dr Umashankar Mishra-9415087711)) पितृ पक्ष का आरंभ -29 सितंबर से १४ अक्टूबर तक चलेगा। पंचांग के अनुसार, पितृ पक्ष का आरंभ भाद्रपद मास की पूर्णिमा से होता है और समापन आश्विन मास की अमावस्‍या पर होता है। इस अमावस्‍या को सर्वपितृ अमावस्‍या कहा जाता है। इसके अगले दिन से नवरात्र का आरंभ हो जाता है। पितृ पक्ष आरंभ २९ सितंबर पितृ पक्ष समापन १४ अक्टूबर पितृ पक्ष एकादशी 10 अक्टूबर पितृ पक्ष त्रयोदशी १२ अक्टूबर पितृ पक्ष का महत्‍व =============== पितृ पक्ष में कोई भी शुभ कार्य करने की मनाही होती है और ऐसा माना जाता है कि पितृ पक्ष में खुशी का कोई भी कार्य करने से पितरों की आत्‍मा को कष्‍ट होता है। इस दौरान शादी, ब्‍याह मुंडन, गृह प्रवेश, अन्‍य शुभ कार्य या फिर कोई भी नई चीज खरीदना शास्‍त्रों में वर्जित माना गया है। इसके साथ ही यह भी माना जाता है कि जिन लोगों की कुंडली में पितृ दोष वे पितृ पक्ष में पितरों को प्रसन्‍न करने के कुछ विशेष उपाय करें तो उनके ये दोष दूर किए जा सकते हैं। पितृ पक्ष में पितरों के निमित्‍त पिंडदान करने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। कुछ लोग काशी और गया जाकर अपने पितरों का पिंडदान करते हैं। पितृ पक्ष में ब्रह्म भोज करवाया जाता है और पितरों के निमित्‍त दान-पुण्‍य किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि पितृ पक्ष में श्राद्ध न करने से पितरों की आत्‍मा तृप्‍त नहीं होती है और उन्‍हें शांति नहीं मिलती है। पितृ तर्पण से प्रसन्‍न होकर पितर अपने परिजनों को सुखी और संपन्‍न रहने का आशीर्वाद देते हैं। पितृ पक्ष की प्रमुख तिथियां ================ २९ सितंबर २०२3 शुक्रवार पूर्णिमा श्राद्ध । ०६ अक्टूबर २०२३ शुक्रवारअष्टमी श्राद्ध। ०७ अक्टूबर २०२3 शनिवार नवमी श्राद्ध। ०८ अक्टूबर २०२३ रविवार दशमी श्राद्ध। 10 अक्टूबर 2023 mangalwar एकादशी श्राद्ध। ११ अक्टूबर 2023 बुधवार द्वादश श्राद्ध। १२ अक्टूबर 2023 गुरुवार त्रयोदशी श्राद्ध। १३ अक्टूबर 2023 शुक्रवार चतुर्दशी श्राद्ध। १४ अक्टूबर २०२३, शनिवार सर्व पितृ अमावस्या पितृ ऐसे किया जाता है तर्पण ================ कुछ लोग पितर पक्ष में रोजाना अपने पितरों के लिए तर्पण करते हैं तो कुछ लोग श्राद्ध की तिथियों पर पितरों के नाम से ब्राह्मणों को भोजन करवाकर श्राद्ध करते हैं। श्राद्ध के दिन ब्राह्मणों को आदरपूर्वक घर बुलाएं और उन्‍हें भोजन करवाकर यथासंभव दान करना चाहिए और उसके बाद भेंट देकर आदर के साथ विदा करना चाहिए। इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए तेल न लगाएं और प्याज, लहसुन इत्यादि का प्रयोग न करे। पितृ पक्ष विशेष (श्राद्ध करने की विधि) ================ ०१- श्राद्धकर्म में गाय का घी, दूध या दही काम में लेना चाहिए। यह ध्यान रखें कि गाय को बच्चा हुए दस दिन से अधिक हो चुके हैं। दस दिन के अंदर बछड़े को जन्म देने वाली गाय के दूध का उपयोग श्राद्ध कर्म में नहीं करना चाहिए। ०२- श्राद्ध में चांदी के बर्तन का उपयोग व दान पुण्यदायक तो है ही राक्षसों का नाश करने वाला भी माना गया है। पितरों के लिए चांदी के बर्तन में सिर्फ पानी ही दिए जाए तो वह अक्षय तृप्तिकारक होता है। पितरों के लिए अर्घ्य, पिण्ड और भोजन के बर्तन भी चांदी के हों तो और भी श्रेष्ठ माना जाता है। ०३- श्राद्ध में ब्राह्मण को भोजन करवाते समय परोसने के बर्तन दोनों हाथों से पकड़ कर लाने चाहिए, एक हाथ से लाए गए अन्न पात्र से परोसा हुआ भोजन राक्षस छीन लेते हैं। ०४- ब्राह्मण को भोजन मौन रहकर एवं व्यंजनों की प्रशंसा किए बगैर करना चाहिए, क्योंकि पितर तब तक ही भोजन ग्रहण करते हैं, जब तक ब्राह्मण मौन रह कर भोजन करें। ०५- जो पितृ शस्त्र आदि से मारे गए हों उनका श्राद्ध मुख्य तिथि के अतिरिक्त चतुर्दशी को भी करना चाहिए। इससे वे प्रसन्न होते हैं। श्राद्ध गुप्त रूप से करना चाहिए। पिंडदान पर साधारण या नीच मनुष्यों की दृष्टि पडने से वह पितरों को नहीं पहुंचता। ०६- श्राद्ध में ब्राह्मण को भोजन करवाना आवश्यक है, जो व्यक्ति बिना ब्राह्मण के श्राद्ध कर्म करता है, उसके घर में पितर भोजन नहीं करते, श्राप देकर लौट जाते हैं। ब्राह्मण हीन श्राद्ध से मनुष्य महापापी होता है। ०७- श्राद्ध में जौ, कांगनी, मटर सरसों का उपयोग श्रेष्ठ रहता है। तिल की मात्रा अधिक होने पर श्राद्ध अक्षय हो जाता है। वास्तव में तिल पिशाचों से श्राद्ध की रक्षा करते हैं। कुशा (एक प्रकार की घास) राक्षसों से बचाते हैं। ०८- दूसरे की भूमि पर श्राद्ध नहीं करना चाहिए। वन, पर्वत, पुण्यतीर्थ एवं मंदिर दूसरे की भूमि नहीं माने जाते क्योंकि इन पर किसी का स्वामित्व नहीं माना गया है। अत: इन स्थानों पर श्राद्ध किया जा सकता है। ०९- चाहे मनुष्य देवकार्य में ब्राह्मण का चयन करते समय न सोचे, लेकिन पितृ कार्य में योग्य ब्राह्मण का ही चयन करना चाहिए क्योंकि श्राद्ध में पितरों की तृप्ति ब्राह्मणों द्वारा ही होती है। १०- जो व्यक्ति किसी कारणवश एक ही नगर में रहनी वाली अपनी बहिन, जमाई और भानजे को श्राद्ध में भोजन नहीं कराता, उसके यहां पितर के साथ ही देवता भी अन्न ग्रहण नहीं करते। ११- श्राद्ध करते समय यदि कोई भिखारी आ जाए तो उसे आदरपूर्वक भोजन करवाना चाहिए। जो व्यक्ति ऐसे समय में घर आए याचक को भगा देता है उसका श्राद्ध कर्म पूर्ण नहीं माना जाता और उसका फल भी नष्ट हो जाता है। १२- शुक्लपक्ष में, रात्रि में, युग्म दिनों (एक ही दिन दो तिथियों का योग)में तथा अपने जन्मदिन पर कभी श्राद्ध नहीं करना चाहिए। धर्म ग्रंथों के अनुसार सायंकाल का समय राक्षसों के लिए होता है, यह समय सभी कार्यों के लिए निंदित है। अत: शाम के समय भी श्राद्धकर्म नहीं करना चाहिए। १३- श्राद्ध में प्रसन्न पितृगण मनुष्यों को पुत्र, धन, विद्या, आयु, आरोग्य, लौकिक सुख, मोक्ष और स्वर्ग प्रदान करते हैं। श्राद्ध के लिए शुक्लपक्ष की अपेक्षा कृष्णपक्ष श्रेष्ठ माना गया है। १४- रात्रि को राक्षसी समय माना गया है। अत: रात में श्राद्ध कर्म नहीं करना चाहिए। दोनों संध्याओं के समय भी श्राद्धकर्म नहीं करना चाहिए। दिन के आठवें मुहूर्त (कुतपकाल) में पितरों के लिए दिया गया दान अक्षय होता है। १५- श्राद्ध में ये चीजें होना महत्वपूर्ण हैं- गंगाजल, दूध, शहद, दौहित्र, कुश और तिल। केले के पत्ते पर श्राद्ध भोजन निषेध है। सोना, चांदी, कांसे, तांबे के पात्र उत्तम हैं। इनके अभाव में पत्तल उपयोग की जा सकती है। १६- तुलसी से पितृगण प्रसन्न होते हैं। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि पितृगण गरुड़ पर सवार होकर विष्णु लोक को चले जाते हैं। तुलसी से पिंड की पूजा करने से पितर लोग प्रलयकाल तक संतुष्ट रहते हैं। १७- रेशमी, कंबल, ऊन, लकड़ी, तृण, पर्ण, कुश आदि के आसन श्रेष्ठ हैं। आसन में लोहा किसी भी रूप में प्रयुक्त नहीं होना चाहिए। १८- चना, मसूर, उड़द, कुलथी, सत्तू, मूली, काला जीरा, कचनार, खीरा, काला उड़द, काला नमक, लौकी, बड़ी सरसों, काले सरसों की पत्ती और बासी, अपवित्र फल या अन्न श्राद्ध में निषेध हैं। १९- भविष्य पुराण के अनुसार श्राद्ध १२ प्रकार के होते हैं, जो इस प्रकार हैं- ०१- नित्य, ०२- नैमित्तिक, ०३- काम्य, ०४- वृद्धि, ०५- सपिण्डन, ०६- पार्वण, ०७- गोष्ठी, ०८- शुद्धर्थ, ०९- कर्मांग, १०- दैविक, ११- यात्रार्थ, १२- पुष्टयर्थ। २०- श्राद्ध के प्रमुख अंग ================ तर्पण- इसमें दूध, तिल, कुशा, पुष्प, गंध मिश्रित जल पितरों को तृप्त करने हेतु दिया जाता है। श्राद्ध पक्ष में इसे नित्य करने का विधान है। भोजन व पिण्ड दान: =============== पितरों के निमित्त ब्राह्मणों को भोजन दिया जाता है। श्राद्ध करते समय चावल या जौ के पिण्ड दान भी किए जाते हैं। वस्त्रदान ======= वस्त्र दान देना श्राद्ध का मुख्य लक्ष्य भी है। दक्षिणा दान ========= यज्ञ की पत्नी दक्षिणा है जब तक भोजन कराकर वस्त्र और दक्षिणा नहीं दी जाती उसका फल नहीं मिलता। २१- श्राद्ध तिथि के पूर्व ही यथाशक्ति विद्वान ब्राह्मणों को भोजन के लिए बुलावा दें। श्राद्ध के दिन भोजन के लिए आए ब्राह्मणों को दक्षिण दिशा में बैठाएं। २२- पितरों की पसंद का भोजन दूध, दही, घी और शहद के साथ अन्न से बनाए गए पकवान जैसे खीर आदि है। इसलिए ब्राह्मणों को ऐसे भोजन कराने का विशेष ध्यान रखें। २३- तैयार भोजन में से गाय, कुत्ता कौआ, देवता और चींटी के लिए थोड़ा सा भाग निकालें। इसके बाद हाथ जल, अक्षत यानी चावल, चन्दन, फूल और तिल लेकर ब्राह्मणों से संकल्प लें। २४- कुत्ते और कौए के निमित्त निकाला भोजन कुत्ते और कौए को ही कराएं किंतु देवता और चींटी का भोजन गाय को खिला सकते हैं। इसके बाद ही ब्राह्मणों को भोजन कराएं। पूरी तृप्ति से भोजन कराने के बाद ब्राह्मणों के मस्तक पर तिलक लगाकर यथाशक्ति कपड़े, अन्न और दक्षिणा दान कर आशीर्वाद पाएं। २५- ब्राह्मणों को भोजन के बाद घर के द्वार तक पूरे सम्मान के साथ विदा करके आएं। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि ब्राह्मणों के साथ-साथ पितर लोग भी चलते हैं। ब्राह्मणों के भोजन के बाद ही अपने परिजनों, दोस्तों और रिश्तेदारों को भोजन कराएं। २६- पिता का श्राद्ध पुत्र को ही करना चाहिए। पुत्र के न होने पर पत्नी श्राद्ध कर सकती है। पत्नी न होने पर सगा भाई और उसके भी अभाव में सपिंडो (परिवार के) को श्राद्ध करना चाहिए । एक से अधिक पुत्र होने पर सबसे बड़ा पुत्र श्राद्ध करें या सबसे छोटा। भारतीय शास्त्रों में ऐसी मान्यता है कि, पितृगण पितृपक्ष में पृथ्वी पर आते हैं, और १५ दिनों तक पृथ्वी पर रहने के बाद अपने लोक लौट जाते हैं। शास्त्रों में बताया गया है कि, पितृपक्ष के दौरान पितृ अपने परिजनों के आस-पास रहते हैं, इसलिए इन दिनों कोई भी ऐसा काम नहीं करें, जिससे पितृगण नाराज हों। पितरों को खुश रखने के लिए पितृ पक्ष में कुछ बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए। पितृ पक्ष के दौरान ब्राह्मण, जामाता, भांजा, गुरु या नाती को भोजन कराना चाहिए। इससे पितृगण अत्यंत प्रसन्न होते हैं। ब्राह्मणों को भोजन करवाते समय भोजन का पात्र दोनों हाथों से पकड़कर लाना चाहिए, अन्यथा भोजन का अंश राक्षस ग्रहण कर लेते हैं, जिससे ब्राह्मणों द्वारा अन्न ग्रहण करने के बावजूद पितृगण भोजन का अंश ग्रहण नहीं करते हैं। पितृ पक्ष में द्वार पर आने वाले किसी भी जीव-जंतु को मारना नहीं चाहिए बल्कि उनके योग्य भोजन का प्रबंध करना चाहिए। हर दिन भोजन बनने के बाद एक हिस्सा निकालकर गाय, कुत्ता, कौआ अथवा बिल्ली को देना चाहिए। मान्यता है कि इन्हें दिया गया भोजन सीधे पितरों को प्राप्त हो जाता है। शाम के समय घर के द्वार पर एक दीपक जलाकर पितृगणों का ध्यान करना चाहिए। सनातन धर्म ग्रंथों के अनुसार जिस तिथि को जिसके पूर्वज गमन करते हैं, उसी तिथि को उनका श्राद्ध करना चाहिए। इस पक्ष में जो लोग अपने पितरों को जल देते हैं, तथा उनकी मृत्युतिथि पर श्राद्ध करते हैं, उनके समस्त मनोरथ पूर्ण होते हैं। जिन लोगों को अपने परिजनों की मृत्यु की तिथि ज्ञात नहीं होती, उनके लिए पितृ पक्ष में कुछ विशेष तिथियां भी निर्धारित की गई हैं, जिस दिन वे पितरों के निमित्त श्राद्ध कर सकते हैं। आश्विन कृष्ण प्रतिपदा ================ इस तिथि को नाना-नानी के श्राद्ध के लिए सही बताया गया है। इस तिथि को श्राद्ध करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है। यदि नाना-नानी के परिवार में कोई श्राद्ध करने वाला न हो और उनकी मृत्युतिथि याद न हो, तो आप इस दिन उनका श्राद्ध कर सकते हैं। पंचमी ===== जिनकी मृत्यु अविवाहित स्थिति में हुई हो, उनका श्राद्ध इस तिथि को किया जाना चाहिए। नवमी ====== सौभाग्यवती यानि पति के रहते ही जिनकी मृत्यु हो गई हो, उन स्त्रियों का श्राद्ध नवमी को किया जाता है। यह तिथि माता के श्राद्ध के लिए भी उत्तम मानी गई है। इसलिए इसे मातृनवमी भी कहते हैं। मान्यता है कि, इस तिथि पर श्राद्ध कर्म करने से कुल की सभी दिवंगत महिलाओं का श्राद्ध हो जाता है। एकादशी और द्वादशी ================ एकादशी में वैष्णव संन्यासी का श्राद्ध करते हैं। अर्थात् इस तिथि को उन लोगों का श्राद्ध किए जाने का विधान है, जिन्होंने संन्यास लिया हो। चतुर्दशी ======= इस तिथि में शस्त्र, आत्म-हत्या, विष और दुर्घटना यानि जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो, उनका श्राद्ध किया जाता है, जबकि बच्चों का श्राद्ध कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को करने के लिए कहा गया है। सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या। ================ किसी कारण से पितृपक्ष की अन्य तिथियों पर पितरों का श्राद्ध करने से चूक गए हैं, या पितरों की तिथि याद नहीं है, तो इस तिथि पर सभी पितरों का श्राद्ध किया जा सकता है। शास्त्र अनुसार, इस दिन श्राद्ध करने से कुल के सभी पितरों का श्राद्ध हो जाता है। यही नहीं जिनका मरने पर संस्कार नहीं हुआ हो, उनका भी अमावस्या तिथि को ही श्राद्ध करना चाहिए। बाकी तो जिनकी जो तिथि हो, श्राद्धपक्ष में उसी तिथि पर श्राद्ध करना चाहिए, यही उचित भी है।