शालिग्राम शिला के पूजन की महिमा Jyotish Aacharya Dr Uma Shankar Mishra 94150 8771 192 3572 2996 शालिग्राम शिला में सदैव चराचर जीवों सहित संपूर्ण त्रिलोकी लीन रहती है. कार्तिक मास में शालिग्राम शिला के दर्शन करने वाले, उसके सामने नतमस्तक होने वाले, उसे स्नान कराने वाले और उसका पूजन करने वाले मनुष्य को कोटि यज्ञों के तुल्य पुण्य तथा कोटि गोदानों का फल मिलता है. शिवजी अपने पुत्र कार्तिकेय से बोले – हे पुत्र ! भगवान विष्णु की शालिग्राम शिला का सदा चरणामृत पान करने वाले मनुष्य के गर्भवास के भयंकर कष्ट नष्ट हो जाते हैं. प्रतिदिन शालिग्राम शिला का पूजन करने वाले व्यक्ति को न यमराज का कोई भय होता है और न ही मरने व जन्म लेने का कोई भय होता है. भगवान का स्वयं का कथन है कि करोड़ों कमल पुष्पों से मेरी पूजा का जो फल मिलता है वह शालिग्राम शिला के पूजन से प्राप्त हो जाता है. मृत्युलोक में आकर जो व्यक्ति कार्तिक मास में भी शालिग्राम का पूजन नहीं करता वह मुझसे द्वेष रखने वाला प्राणी है. उसे तब तक नरक की यातना सहन करनी पड़ती है जब तक कि चौदह इन्द्रों की आयु समाप्त नहीं हो जाती. इसलिए भक्तिपूर्वक शालिग्राम शिला को प्रणाम करने वाला जीव नरक को प्राप्त नहीं होता. अन्य सभी शुभ कार्यों से प्राप्त फल का तो माप है लेकिन कार्तिक मास में शालिग्राम का पूजन करने से प्राप्त होने वाले फल का कोई माप नहीं है. शालिग्राम के जल से अपना अभिषेक करने वाला व्यक्ति संपूर्ण तीर्थों के स्नान का फल प्राप्त करता है. विशेषतौर पर कार्तिक मास में शालिग्राम शिला के सामने स्वस्तिक का चिन्ह बनाकर मनुष्य अपनी सात पीढ़ियों तक को पवित्र कर लेता है. प्रतिदिन शालिग्राम शिला रूपी भगवान विष्णु को प्रणाम कर गृहस्थी के कार्य आरंभ करने वाली स्त्री सात जन्मों तक विधवा नहीं होती. इसलिए सदैव सुहागिन के रुप में प्रतिष्ठित रहने के लिए इस पूजन का बहुत महत्त्व है.