कुंडली के इस योग में होती है लव मैरिज कुंडली ज्योतिष शास्त्र में सप्तम स्थान विवाह का होता है। हिंदू धर्म में 8 प्रकार के विवाह माने गये है ब्रह्मा विवाह को सर्वश्रेष्ट तथा पैशाच विवाह को निकृष्ट विवाह की श्रेणी में रखा गया है। इन में गंधर्व विवाह भी विवाह का एक प्रकार है। गंधर्व विवाह को ही प्रेम विवाह किया जाता है। प्रेम विवाह में वर कन्या अपनी मर्जी से विवाह करते है। Jyotish Acharya Dr Umashankar Mishra 9415 087 711 923 5722 996 जन्म कुंडली का सप्तम स्थान विवाह स्थान होता है। जब सप्तम या सप्तमेष का सम्बंध 3,5,9,11 और 12वें भाव के मालिक के साथ बनता हैं तब जातक प्रेम विवाह करता है। इन सम्बंधों में दृष्टी युति के अतिरिकत त्रिकोण तथा केंद्र सम्बंधों को भी महत्वपूर्ण माना जाता है। जन्म कुंडली में ग्रहों की विभिन्न स्थिति कैसे प्रेम विवाह को दर्शाती है आइये जानेंं - प्रेम विवाह – सप्तमेश यदि पंचम स्थान के मालिक के साथ 3, 5,7,11 और 12वें भाव में स्थित हो तो जातक प्रेम विवाह अवश्य करता है। पंचम स्थान प्रेम सम्बन्ध तथा मित्रों का माना जाता है ऐसे में सप्तमेष का सम्बंध पंचमेश से हो जाये तो व्यक्ति के प्रेम विवाह करने के योग बनते है। ऐसे में पंचमेश और सप्तमेष एक साथ यदि 3,5,7,11 और 12 भाव में से किसी भाव में स्थित हो तो निश्चित रूप से जातक प्रेम विवाह करता है। राहु-केतु – राहु-केतु का प्रभाव सप्तम, पंचम स्थान या इनके मालिकों पर पडता हो तथा इन स्थानों के मालिक 3,5,7,11 और 12वें भाव पर स्थित हो तब व्यक्ति प्रेम विवाह करता है। कुंडली में स्थिति – पंचमेश तथा सप्तमेश एक दूसरे से त्रिकोण या केंद्र स्थान में स्थित हो तो जातक प्रेम विवाह करता है। इसके प्रभाव में चमकेगा आपका वैवाहिक जीवन पंचमेश – यदि पंचमेश एकादश स्थान में स्थित हो तथा सप्तमेश बारहवें, तिसरे या पांचवे स्थान में स्थित हो तो जातक प्रेम विवाह अवश्य करता है। प्रस्तुत कुंडली सप्तमेष शनि पंचम में तथा पंचमेश मंगल एकादश में स्थित है। लम्बे अफेयर को शादी का रूप देते है ।