कैसे अर्पित करें देवी-देवताओं को प्रसाद, जानिए 12 खास बातें भारतीय धर्म संस्कृति के अनुसार देवताओं का नैवेद्य यानी देवी-देवताओं के निवेदन के लिए जिस भोज्य द्रव्य का प्रयोग किया जाता है, उसे नैवेद्य कहते है। उसे अन्य नाम जैसे भोग, प्रसाद, प्रसादी आदि भी कहा जाता है। Jyotish Acharya Dr Umashankar Mishra ज्योतिषाचार्य आकांक्षा श्रीवास्तव 94150 87711 यहां पाठकों के लिए प्रस्तुत है देवताओं को नैवेद्य अर्पित करने के कुछ नियम, जिन्हें अपना कर आप भगवान की कृपा प्राप्त कर सकते है। नैवेद्य चढ़ाने के 12 नियम :- * देवता को निवेदित करना ही नैवेद्य है। सभी प्रकार के प्रसाद में निम्न पदार्थ प्रमुख रूप से रखे जाते हैं- दूध-शकर, मिश्री, शकर-नारियल, गुड़-नारियल, फल, खीर, भोजन इत्यादि पदार्थ। * तैयार सभी व्यंजनों से थोड़ा-थोड़ा हिस्सा अग्निदेव को मंत्रोच्चार के साथ स्मरण कर समर्पित करें। अंत में देव आचमन के लिए मंत्रोच्चार से पुन: जल छिड़कें और हाथ जोड़कर नमन करें। * भोजन के अंत में भोग का यह अंश गाय, कुत्ते और कौए को दिया जाना चाहिए। * पीतल की थाली या केले के पत्ते पर ही नैवेद्य परोसा जाए। * प्रत्येक पकवान पर तुलसी का एक पत्ता रखा जाता है। * नैवेद्य की थाली तुरंत भगवान के आगे से हटाना नहीं चाहिए। * शिव जी के नैवेद्य में तुलसी की जगह बेल और गणेश जी के नैवेद्य में दूर्वा रखते हैं। * नैवेद्य देवता के दक्षिण भाग में रखना चाहिए। * कुछ ग्रंथों का मत है कि पक्व नैवेद्य देवता के बाईं तरफ तथा कच्चा दाहिनी तरफ रखना चाहिए। * नमक, मिर्च और तेल का प्रयोग नैवेद्य में नहीं किया जाता है। * नैवेद्य में नमक की जगह मिष्ठान्न रखे जाते हैं। * भोग लगाने के लिए भोजन एवं जल पहले अग्नि के समक्ष रखें। फिर देवों का आह्वान करने के लिए जल छिड़कें।